पहिली के जमाना मा साझा-परिवार रहिन। हर परिवार मा सुविधा के कमी रहिस फेर सुख के गंगा बोहावत रहिस। सियान मन के सेवा आखरी साँस तक होवत रहिस।अब कल्चर बदल गे, साझा परिवार टूट गे। सुविधा के कोनो कमी नइये, फेर सुख के नामनिशान नइये। लोगन आभासी सुख के आदी होवत हें। सियान मन वृद्धाश्रम जावत हें। जउन मन वृद्धाश्रम नइ जावत हें, उंकर घर मन वृद्धाश्रम सहीं बन गेहे। ककरो बेटा ऑस्ट्रेलिया मा, ककरो अमेरिका मा, ककरो कनाडा मा, ककरो सिंगापुर मा। अपन जिनगी के सरी सुख ला त्याग के बेटा ला उच्च शिक्षा देवइया दाई ददा मन अपन घर मा बेसहारा।
कल्चर बदल गे।अब सब झन नाम, पद अउ पइसा के पाछू भागत हें। हाई सोसायटी के दोस्त-यार मन सिद्ध पुरुष होगें। इनकर संग क्लब, पब, पार्टी मा जाना सभ्यता के पहिचान बनगे। एयरकंडीशन, टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, मॉड्यूलर किचन, कीमती फर्नीचर के स्टोर रूम ला अपन घर कहात हें। जिनगी काये ? सुख काला कहिथें ? सोचे बर फुरसत नइये।
कल्चर बदल गे। रोटी-पराठा दकियानूसी खाना होगे। पिज्जा-बर्गर अनिवार्य भोजन बनगे। नान नान कपड़ा मन, सभ्यता के मापदंड होगे। रोटी बदल गे, कपड़ा बदल गे, मकान बदल गे। पहिली रोटी, कपड़ा, मकान ला मनखे के मूलभूत आवश्यकता माने जाय। अब फ़ास्ट फूड, जीन्स, क्लब मन मूलभूत आवश्यकता बन गें।
कल्चर बदल गे। दाई-ददा, भाई-बहिनी, कका-काकी, मौसा-मौसी, फूफा-फूफी, नाता-रिश्ता पराया होगे। फेसबुकिया अउ वाट्सपिया रिश्ता गहिर होगे जानो-मानो बीमार पड़े मा अस्पताल लेगे बर, कंधा देहे बर इही मन आहीं।
कल्चर बदल गे। जीये के तरीका बदल गे फेर प्रकृति अपन कल्चर ला नइ बदलिस। मनखे के देह अपन कल्चर ला नइ बदलिस। अनियमित अउ अशुद्ध खानपान अपन कल्चर नइ बदलिस। पहिली बुखार, मोतीझिरा, सर्दी, खाँसी, तपेदिक जइसे बीमारी अउ चेचक, हैजा, प्लेग जइसे महामारी के गिनती के नाम रहिन। अब कैंसर, हाइपरटेंशन, हार्ट अटैक, थैलेसेमिया, स्लिप डिस्क, जइसे अनेक बीमारी के नाम सुने मा आथे।
कल्चर बदल गे। मनखे के काया के कल्चर नइ बदलिस। चोट लगे मा आँसू आथे। खुश होय मा हाँसी आथे। जनम होवत हे। मौत घलो होवत हे। जचकी ले श्मशान तक के रद्दा वइसने के वइसने रहिगे। इहाँ कोनो विकास के काम नइ होइस। ये रद्दा गौरव-पथ या राज-पथ जइसे नइ सँवर पाइस।
कल्चर बदल गे। अकेल्ला सियान बन्द कमरा मा मर गे। बदबू फैलिस तब आस पास के रहवइया मन के शिकायत मा पुलिस आके दरवाजा ला तोड़ के, पोस्टमार्टम कराइस अउ सरकारी रीति रिवाज मा अंतिम संस्कार के बेटा मन ला सूचना भेज दिस। कुछ लायक औलाद मन विदेश ले आके सगा-सहोदर ला नेवता देके जोरदार शांति भोज के आयोजन करिन, तहाने मकान ला बेचके वापिस अपन कर्मभूमि मा चल दिन। सही मा कल्चर बदल गे।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़